1. टी20 अब पैसा और दर्शकों वाला फ़ॉर्मेट है
आईपीएल जैसी लीग्स (और अब यूएई, अमेरिका, साउथ अफ्रीका वगैरह की नई लीग्स) बहुत पैसा कमाती हैं और युवा दर्शकों को खींचती हैं, जिन्हें 3 घंटे का मैच 7 घंटे वाले मैच से ज़्यादा पसंद आता है। इसलिए ब्रॉडकास्टर्स सबसे पहले टी20 कैलेंडर सेट करते हैं — बाकी सब उसके बाद फिट होता है।
2. टेस्ट क्रिकेट को अब भी राजनीतिक सुरक्षा मिली हुई है
टेस्ट को प्रतिष्ठा माना जाता है। “बिग थ्री” (भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड) टेस्ट क्रिकेट को विरासत की तरह ट्रीट करते हैं — कोई बोर्ड यह छवि नहीं बनाना चाहता कि उसने टेस्ट को मारा। इसलिए जब कुछ कम करना पड़ता है… तो बीच का बच्चा यानी ODI कटता है।3. ODI वर्ल्ड कप ही अब इसकी सबसे बड़ी पहचान बची है
वर्ल्ड कप के बाहर होने वाली द्विपक्षीय ODI सीरीज़ अब मायने खो रही हैं — खिलाड़ी भी उन्हें बस तैयारी या सिलेक्शन ट्रायल की तरह खेलते हैं। फैंस भी — वर्ल्ड कप देखते हैं, पर इंडिया बनाम श्रीलंका की रैंडम 3-ODI सीरीज़ स्किप कर देते हैं।4. शेड्यूल में ठूंस-ठूंस कर मैच + खिलाड़ियों की थकान
3 फ़ॉर्मेट + फ्रेंचाइज़ी कॉन्ट्रैक्ट + लगातार यात्रा — यह सब एक साथ टिकाऊ नहीं। कुछ न कुछ तो कम करना पड़ेगा — और कैलेंडर छोटा होता है तो सबसे पहले ODI कटे जाते हैं।5. कुछ बोर्ड तो ODI छोड़ भी रहे हैं
साउथ अफ्रीका ने 2023 की एक ODI सीरीज़ सीधे फॉरफिट कर दी ताकि उनकी नई T20 लीग के लिए जगह बन सके। 5 साल पहले ये सोचना भी मुश्किल था।आगे क्या हो सकता है?
ODI कम होंगे, मगर जितने होंगे उतने “मायने वाले” होंगे (जैसे वर्ल्ड कप साइकिल, ICC टूर्नामेंट आदि)।
50 ओवर से घटाकर 40 ओवर करने पर भी हल्की-फुल्की बातचीत शुरू हो चुकी है।
लंबे समय में मुमकिन है कि ODI सिर्फ वर्ल्ड कप वाला फ़ॉर्मेट बन जाए — जैसे हॉकी में 11-ए-साइड फ़ॉर्मेट सिर्फ बड़े टूर्नामेंट के लिए रहता है।
